शोले फिल्म में बोला गया डायलॉग “मेरा नाम सुरमा भोपाली ऐसेई नहीं है” अमर हो गया है. बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता जगदीप द्वारा बोला गया ये डायलॉग फिल्म ‘शोले’ से था। इस फिल्म में जगदीप ने ‘सुरमा भोपाली’ का यादगार रोल निभाया था। फिल्म के साथ-साथ यह किरदार भी इतना हिट हुआ की लोग जगदीप साहब को ‘सुरमा भोपाली’ के नाम से जानने लगे।
बॉलीवुड के जानेमाने कॉमेडियन जगदीप साहब ने 8 जुलाई को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बहुत कम ही लोग है जो उन्हें उनके सही नाम जानते हैं। सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी को बॉलीवुड ने जगदीप का नाम दिया। ‘शोले’ फिल्म से पहले भी जगदीप साहब कई यादगार भूमिकाएं निभा चुके थे।
जगदीप साहब ने फिल्म इंडस्ट्री को 60 साल दिए. सन 1951 में उन्होंने बतौर बाल अभिनेता फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी. कई रोचक किरदार और 400 से भी अधिक फिल्मों में उन्होंने काम किया था. इन सब भूमिकाओं में उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी थी। रमेश सिप्पी की निर्देशन में 1975 बनी फिल्म ‘शोले’ में उन्हें सुरमा भोपाली का रोल दिया गया। बस इसी भूमिका को निभाते हुए वो कब जगदीप से सुरमा भोपाली बन गए वो पता ही नहीं चला.
उनका ये किरदार बड़ा ही रोचक ही था। इसीलिए 400 से ज़्यादा फिल्मे करने के बाद भी जगदीप साहब का कोई पसंदीदा किरदार था, तो वह था, शोले का सुरमा भोपाली का किरदार। लोगों ने सुरमा भोपाली के किरदार को काफी पसंद किया और जगदीप साहब सबके चहेते कॉमेडियन बन गए।
इसके बाद जगदीप साहब को सुरमा भोपाली के नाम से ही जाने जाना लगा और इसी लोकप्रियता की वजह से जगदीप साहब ने सुरमा भोपाली के नाम से ही एक फिल्म बनाने की सोची और उन्होंने अपने सबसे पसंदीदा किरदार पर फिल्म बना भी डाली। लेकिन इस फिल्म के निर्माण के बाद जगदीप साहब को काफी पछताना भी पड़ा. यहाँ ये जानना बेहद दिलचस्प होगा कि उनका फैसला क्यों उनपर भारी पड़ा और कैसे सूरमा भोपाली के किरदार से जगदीप साहब को शोहरत मिली और कैसे सूरमा भोपाली फिल्म से ही जगदीप साहब बर्बाद भी हुए.
जगदीप साहब सुरमा भोपाली की लोकप्रियता से भली-भाँती वाकिफ थे और सुरमा भोपाली उनका भी पसंदीदा किरदार था। जगदीप साहब ने जब खुद मूवी बनाने की सोची तो उन्होंने फिल्म का नाम ही सुरमा भोपाली रख दिया। उनकी ये खुद की होम प्रोडक्शन की फिल्म थी जिसमे एक्ट भी उन्होंने ही किया था. निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। इस फिल्म में अरुणा ईरानी, कादर खान, रंजीत जैसे कलाकारों ने भी काम किया था. फिल्म बन कर तैयार तो हो गई थी पर फिल्म को कोई खरीदने को तैयार ही नहीं हुआ।
ऐसा क्यों हुआ? जगदीप साहब ने 1988 में जब यह फिल्म बनायीं तब बॉलीवुड में कम्पटीशन काफी बढ़ चूका था। जगदीप साहब अपने काम में काफी माहिर थे पर बात वही आ गई थी की वो कोई लीड हीरो नहीं थे, वो एक करैक्टर आर्टिस्ट थे। इसलिए उनकी पसंदीदा फिल्म को कोई भी खरीदने को तैयार नहीं हुआ. जगदीप साहब सोच में पड़ गए की आखिर इस फिल्म की वैल्यू को कैसे बढ़ाया जाए ताकि फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स ये फिल्म ख़रीदे। तब उनके कुछ दोस्तों ने सुझाव दिया की वो अपनी फिल्म में बड़े-बड़े स्टार्स की गेस्ट अपीयरेंस रखवा दें ताकि डिस्ट्रीब्यूटर्स इसे हसते-हसते खरीद ले।
फिल्म इंडस्ट्री में जगदीप साहब के सबसे अच्छे रिलेशन्स थे इसलिए अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, रेखा और डैनी जैसे कलाकारों ने जगदीप साहब के कहने पर इस फिल्म में गेस्ट अपीयरेंस किया और एक रूपया भी चार्ज नहीं किया। इन सभी स्टार्स की गेस्ट अपीयरेंस की वजह से डिस्ट्रीब्यूटर्स ने फिल्म खरीद ली और आख़िरकार इस फिल्म को 1988 में रिलीज़ किया गया।